घर और रोजगार
देखो तो सारा खेल घर का ही है .....
जिसे देखो घर की ही बात करता है .....
कभी बात करो 20 साल के छोकरे की ......
तो वो घर बाहर निकलना चाहता है।
बात थोड़ी आगे बढ़े 30 में पहुंचे
तो वही लड़का .............. घर लौटना चाहता है।
40 के आते आते खुद का घर बनाना चाहता है ......
अपना.... खुद का ..... घर ही नहीं ..... परिवार भी बनाना चाहता है ......
50 में पहुंते तो ..........जीने के लिए घर चाहिए ....
वो आराम चाहता है ..... मगर अपने घर में
साठ आ गया ..... आ गया न .....
अब ख्वाहिश है , चैन से घर मे मरने की .......
सारी कवायद घर की है .......
घर बनेगा कब ......?
जब रोजगार रहेगा ..... पैसे आएंगे ......
रोजगार जरुरी है ..... पैसा जरुरी है ......
बेरोजगार युवा किसी काम का नहीं ......
रोजगार न हो तो वह किसी काम का नहीं .....
वो घर तभी बनाएगा जब रोजगार पाएगा .......
घर से परिवार और परिवार से समाज .... सब कुछ घऱ पर ही ..... टिका है ...
