(Photo Courtesy- Swapnil Premdas, S. Dance Academy Raipur)
शिशुपाल पर्वतः 900 फीट की उंचाई पर एडवेंचर का अड्डा
समुद्र तल से 900 फीट की ऊंचाई पर स्थित है यह पर्वत जिसका नाम है शिशुपाल
पर्वत, छत्तीसगढ़ के पापुलर डेस्टिनेशन में अब इसकी गिनती होने लगी है । बरसात के दिनों
में पानी 1100 फीट नीचे गिरकर बनाता है घोड़ाधार जलप्रपात जिसकी अपनी अलग ही कहानी है , इस ब्लाग पोस्ट
में आपको पूरी जानकारी देने का प्रयास रहेगा इस शिशुपाल पर्वत के बारे में ......
ट्रैकिंग और एडवेंचर के शौकीन के लिए शानदार स्पाट
पर्यटन और ऐतिहासिक, धार्मिक व पौराणिक महत्व से भरपूर छत्तीसगढ़ में अनेक ऐसे स्थान हैं जिनका उचित
मूल्यांकन शेष है ऐसा ही एक स्थान जो इन दिनों खूब लोकप्रिय हो रहा है...... वह है महासमुंद जिला के अंतर्गत सरायपाली स्थित
शिशुपाल पर्वत ....... इन दिनों नए पर्यटन डेस्टिनेशन के रूप में उभर कर यह जगह
सामने आई है । इस पर्वत का अपना ही ऐतिहासिक, धार्मिक और पौराणिक महत्व
है। हर मकर संक्रांति और महाशिवरात्रि के दिन यहां पर यहां भव्य मेले का
आयोजन किया जाता है।
ऐतिहासिक लोककथाओं से जुड़ा है पर्वत का नाम
महासमुंद जिले के सरायपाली स्थित शिशुपाल पर्वत ट्रैकिंग और एडवेंचर के शौकीन
युवाओं के लिए एक शानदान डेस्टिनेशन है। यह स्थान अपनी अद्वितीय प्राकृतिक सुंदरता
और ऐतिहासिक महत्त्व के लिए जाना जाता है। राजधानी रायपुर से 157 किमी और सरायपाली से लगभग 20 किमी की दूरी पर स्थित यह पर्वत पर्यटकों को प्रकृति के
करीब लाने का एक शानदार अवसर प्रदान करता है।
शिशुपाल पर्वत (बूढ़ा डोंगर) समुद्र तल से 900 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां तक पहुंचने के लिए रोमांचक ट्रैकिंग मार्ग है, जो रोमांचक ट्रैकिंग का नया अनुभव कराता है। यह पर्यटन स्थल साहसिक गतिविधियों के प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। ट्रैकिंग मार्ग घने जंगलों, चट्टानों और प्राकृतिक पगडंडियों से होकर गुजरता है। पहाड़ के ऊपर एक विशाल मैदान है, जहां से वर्षा ऋतु के दौरान पानी 1100 फीट नीचे गिरकर घोड़ाधार जलप्रपात का निर्माण करता है। यह झरना और उसके चारों ओर हरियाली एक अप्रतिम दृश्य प्रस्तुत करता है। पर्यटन की बढ़ती संभावनाओं को देखते हुए पर्यटन मंडल ने इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की पहल की है, यहां पहुंचने वाले सैलानियों के लिए आधारभूत सुविधाओं का निर्माण किया गया है जिससे उनकी यात्रा सुखद और आरामदायक हो सके।
शिशुपाल पर्वत की प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण इसे एक आदर्श पर्यटन स्थल
के रूप में अपनी पहचान बना रही हैं। यहां का वातावरण,
झरने की आवाज, ठंडी हवा एवं प्राकृतिक सुंदरता व शांति का संगम पर्यटकों
को मानसिक शांति और सुकून का अनुभव कराती है। यह स्थान फोटोग्राफी और प्रकृति के
अद्भुत दृश्यों के लिए भी प्रसिद्ध है। शिशुपाल पर्वत न केवल रोमांचक ट्रैकिंग
स्थल है,
बल्कि इतिहास और प्रकृति का अद्भुत संगम भी है। यह स्थान
ट्रैकिंग,
फोटोग्राफी और प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेने के लिए एक
बेहतरीन विकल्प है। यदि आप प्राकृतिक सुंदरता, रोमांच और इतिहास का अनुभव करना चाहते हैं,
तो शिशुपाल पर्वत आपकी सूची में होना चाहिए। अपनी ऐतिहासिक
महत्व और प्राकृतिक आकर्षण के साथ, शिशुपाल पर्वत आज के दौर में पर्यटन का नया केंद्र बनता जा
रहा है।
शिशुपाल पर्वत पर्यटन स्थल में हर वर्ष मकर संक्रांति और महाशिवरात्रि के अवसर
पर भारी संख्या में भक्त दर्शन और पूजन के लिए आते हैं। इस दौरान मंदिर के आसपास
भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें लोग धार्मिक अनुष्ठानों के साथ-साथ मेले की चहल-पहल
का आनंद लेते हैं। मकर संक्रांति पर लगने वाला यह मेला इतिहास और प्राकृतिक
सौंदर्य का संगम है। धार्मिक आस्था, ऐतिहासिकता, साहसिक पर्यटन का अद्भुत अनुभव इसे एक संपूर्ण पर्यटन स्थल
बनाता है। यह मेला न केवल स्थानीय लोगों के लिए, बल्कि दूर-दूर से आने वाले पर्यटकों के लिए भी विशेष आकर्षण
का केंद्र है। यहां रोजगार के नए अवसर भी सृजित हो रहा है।
ऐतिहासिक लोककथाओं से जुड़ा है पर्वत का नाम
शिशुपाल पर्वत का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्त्व है। इसे लेकर स्थानीय नागरिकों
का कहना है कि शिशुपाल पर्वत (बूढ़ा डोंगर) का नाम स्थानीय लोककथाओं से जुड़ा हुआ
है। इस संदर्भ में किंवदंती है कि इस पहाड़ पर कभी राजा शिशुपाल का महल हुआ करता
था। यहां का गौरवशाली इतिहास रहा है पर्वत के उपर ही अभेद्य दुर्ग,
सुरंग एवं शिवमंदिर का निर्माण किया गया है,
जिसका भग्नावशेष आज भी अतीत की गौरवगाथा सुनाती है। जब
अंग्रेजों ने राजा को घेर लिया, तो उन्होंने वीरता का प्रदर्शन करते हुए अपने घोड़े की आंखों
पर पट्टी बांधकर पहाड़ से छलांग लगा दी। इस घटना के कारण इस पर्वत का नाम शिशुपाल
पर्वत और यहां स्थित झरने का नाम घोड़ाधार जलप्रपात पड़ा। यह बारहमासी झरना अत्यधिक
ऊँचाई से गिरने के कारण अद्भुत सौंदर्य का अप्रतिम उदाहरण है।
इसी विषय में एक और बात
सुनने को मिलती है किवदंतियों के अनुसार बूढा डोंगर शिशुपाल
पर्वत पर फुलझर के अंतिम प्रमुख राजा की सात रानियां थी राजा के युद्ध मे प्राणांत
होने पर उनकी रानियो ने भयंकर घोड़ा धार झरने से कूदकर सती धर्म का पालन किया था
वर्तमान में प्राचीन गढ़ केना में उक्त ग्राम के मध्य सती दाई नामक एक देवी की
सामान्य प्रस्तर खण्ड के रूप में पूजा की जाती है उक्त सती दाई भी पूर्व कालीन
किसी सामन्त राजा की रानी रही होगी जिसने अपनी पति के मृत्यु के पश्चात सती धर्म
का पालन किया होगा ।
बेस्ट
टूरिस्ट रुट की संभावना
इस क्षेत्र को पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित किए जाने की पहल की जा रही है।
वन विभाग द्वारा पर्यटन और रोजगार की संभावनाओं को देखते हुए स्थल का परखा है और
चूंकि आसपास के क्षेत्र में बंसोड़ जाति बहुतायत संख्या में पाए जाते हैं,
जो बांस की कलाकृति बनाते हैं। उन्हें भी रोजगार से जोड़ा जा
सके। साथ ही एक पर्यटन परिपथ के रूप में भी विकसित किया जाए। विशेषज्ञों का कहना
है कि यहां से चंद्रहासिनी देवी मंदिर, गोमर्डा अभ्यारण, सिंघोड़ा मंदिर, देवदरहा जलप्रपात एवं पर्यटन स्थल नरसिंहनाथ को जोड़ा जा सकता
है।
यहां आसपास स्थित कुछ प्रमुख स्थलों के बारे में जानना जरुरी है
पंचमुखी हनुमान मंदिर
कुछ
सौ मीटर की चढ़ाई करने के बाद आपको एक छोटा सा हनुमान मंदिर मिलेगा. स्थानीय लोग
बताते हैं कि इस पंचमुखी हनुमान मंदिर तक पहुंचकर लोग थोड़ा सुस्ता सकें इसके लिए
ग्रामीणों ने बड़ी मेहनत की है. वे जब मंदिर के मेले में जाते हैं तो एक थैले में
रेत और एकाध ईंट ले आते हैं और यहां उसको बिछा देते हैं. इससे पर्वत पर चढ़ने
वालों के लिए थकने पर थोड़ा बैठने की जगह बन गई है.
रानी
तालाब और राजा कचहरी
बताते हैं
कि राजा शिशुपाल की दो रानियां थीं। दोनों के अलग-अलग सरोवर यानि तालाब थे जो अब
भी हैं। वहीं राजा की कचहरी के भग्नावशेष भी हैं, जहां राजा प्रजा से मिला करते थे।
शस्त्रागार
यहाँ एक बहुत लंबी सुरंग है। नदी की रेत ने अब इस सुरंग का मार्ग अवरुद्ध कर दिया है लेकिन स्थानीय निवासी बताते हैं कि सुरंग के भीतर अब भी राजा के अस्त्र-शस्त्र पड़े हुए हैं।
कैसे पहुंचे?
- अगर आप रेलमार्ग से आ रहे हैं तो आप छत्तीसगढ़ के महासमुंद रेलवे स्टेशन पर उतर सकते हैं और यदि आप हवाई मार्ग से आना चाहे तो फिर विवेकानंद हवाई अड्डे, रायपुर तक आने के बाद टैक्सी करके यहां तक पहुंच सकते हैं
- छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से इसकी दूरी लगभग 160 किमी है जिसे आप टैक्सी या किसी भी दूसरे सड़क मार्ग के साधन से पूरा कर सकते हैं
- निकटतम बस स्टैंड की बात करें तो जिला मुख्यालय सरायपाली यहां से लगभग 20 किमी दूर है ।
कब जाएं
ऐसे जंगल के पर्यटन स्थल पर सैर करने के
लिए किसी विशेष मौसम की जरुरत नहीं मगर बरसात के दिनों में जाने पर इसका सौंदर्य
अपने य़ौवन पर रहता है क्योंकि तब जलप्रपात का असली मजा देखने को मिलता है ।
क्या ध्यान रखें
· यह एक ट्रैकिंग डेस्टीनेशन
है इसलिए अपनी पूरी जरुरत के सामान साथ लेकर चलें
· कोशिश करें कि ग्रुप के साथ
यहां का ट्रिप प्लान करें
· पहाड़ी में चढ़ते समय
सावधानी रखें
फोटो साभार – स्वप्निल प्रेमदास (Swapnil Premdas , S. Dance
Academy)
FAQ ( अक्सर
पूछे जाने वाले प्रश्न)
1. यह स्थान किस प्रदेश में है ?
यह स्थान छत्तीसगढ़ प्रांत के
सरायपाली जिले मे अवस्थित है
2. क्या सड़क मार्ग से यहां
पहुंचा जा सकता है ?
हां, मगर आगे लंबा ट्रेकिंग
करना पड़ेगा
3. जलप्रपात किस मौसम में देखा
जा सकता है?
इसके लिए बरसात के मौसम में
आना बेहतर रहेगा
4. क्या पहाड़ के उपर कोई
पिकनिक स्पाट है ?
पहाड़ के उपर एक सपाट मैदान
है जो अपने आप में सुंदर और अदभुत है



