293 मिलियन साल पुराने समुद्री जीवाश्मों का राज़ खोलता गोंडवाना मरीन फॉसिल पार्क
जीवाश्मों का रहस्य- गोंडवाना मरीन फासिल्स पार्क
छत्तीसगढ़ का नैसर्गिक आनंद और सौंदर्य अपने आप में अप्रतिम है, पहाड़ों,
झरनों और जंगलों से घिरे इस प्रदेश की अपनी ही कहानी है । पर्यटन की अपार
संभावनाओं से भरे इस प्रदेश में प्राकृतिक
सुंदरता से भरपूर घूमने-फिरने के लिए अनेक ऐसे शानदार स्पाट हैं, जिनका अभी तक ठीक से परिचय भी नहीं हो पाया है , लेकिन
अब समय आ गया है कि हम पारंपरिक पर्यटन स्थलों से इतर यहां की कुछ ऐसी जगहों से रुबरु होवें जिनको
जानना जरुरी है ।
क्यों जरुरी है जानना
इसी क्रम में आज के आलेख में हम बात करेंगे राज्य के एक अनमोल खजाने गोंडवाना मरीन फॉसिल पार्क की, कोरिया जिला
प्रदेश का प्राकृतिक सौंदर्य से भरा-पूरा जिला है
इसी जिले में यानी मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर
जिले में स्थित है यह पार्क जो एशिया
का सबसे बड़ा समुद्री जीवाश्म उद्यान है, यहां पर आप पृथ्वी के 293 मिलियन साल पुराने इतिहास की झलक देख सकते हैं । अतीत में
यह उस दौर की कहानी बताता है जब आज
का यह भूभाग एक ठंडे समुद्र के नीचे डूबा हुआ था, इतनी ही नहीं यह जीवाश्म पार्क
केवल अतीत की कहानी नहीं बताता, अपितु देश की भूगर्भीय विरासत को वैश्विक स्तर पर पहचान
दिलाने के अवसर भी उपलब्ध करवाता है , हमें एक नया गौरव प्रदान करता है। गोंडवाना जीवाश्म पार्क गोंडवाना सुपरग्रुप से
संबंधित तालचिर संरचना के जीवाश्ममय समुद्री पर्मियन चट्टानों (240 – 280 Ma) का एक अद्वितीय
प्रदर्शन है। यह लगभग एक कि.मी. की लंबाई में हसदेव नदी और हसिया नाला के संगम तक
उजागर है। ब्रायोजोन, क्रिनॉइड्स एवं फोरामिनिफेरा के
अतिरिक्त शीष्ट में यूरिडेस्मा एवं अविकुलोपेक्टेन जैसे पेलिसिपोड/पटलक्लोमों की
बहुलता समुद्री जीव-जंतुओं का प्रतिनिधित्व करती है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने इस दिशा में अपने
प्रयास किए हैं और इस अनमोल धरोहर को दुनिया के सामने लाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता
दिखाई है,
सरकार की इच्छा शक्ति है कि वह इस स्थान वैज्ञानिक पर्यटन
के मानचित्र पर एक प्रमुख केंद्र के रूप
में विकसित होता देखे ।
पार्क की इतिहास
साल 2010 में हसदेव नदी के तट पर समुद्री जीवों के जीवाश्म पाए गए थे. बाद में एक्सपर्ट की टीम ने करोड़ों साल पुराने समुद्री जीवाश्मों के होने की पुष्टि आमाखेरवा में की थी. साथ ही पूरे क्षेत्र को जियो हैरिटेज सेंटर के रूप में विकसित करने की सलाह दी. मनेंद्रगढ़ के फॉसिल्स को गोंडवाना मैरीन फासिल्स पार्क का नाम भी दिया गया, मगर इससे पहले यदि हम पार्क के इतिहासपर नजर डाले तों पाते हैं कि इस पार्क की खोज 1954 में भूवैज्ञानिक एस.के. घोष ने कोयला खनन के दौरान की थी, वर्ष 2015 में बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पेलियो साइंसेज लखनऊ के वैज्ञानिकों ने भी इस की पुष्टि की। इसकी विशेषता न सिर्फ इसका विशाल क्षेत्रफल है, बल्कि यह भारत का एकमात्र ऐसा समुद्री जीवाश्म पार्क है जिसे राष्ट्रीय भूवैज्ञानिक स्मारक का दर्जा प्राप्त है। यहां पर द्विपटली (बायवेल्व) जीव, गैस्ट्रोपॉड, ब्रैकियोपॉड, क्रिनॉइड और ब्रायोज़ोआ जैसे समुद्री जीवों के जीवाश्म मिले हैं। ये जीवाश्म तालचिर संरचना से संबंधित हैं, जो पर्मियन युग के शुरुआती दौर को दर्शाते हैं। इतना पुराना इतिहास छत्तीसगढ़ के इस प्रदेश में स्थित है इस बात की जानकारी ही बहुत कम लोगों को होगी ।
कैसे बना होगा यह
शोधकर्ताओं ने इस पर अपने अनुमान से इस बात का अंदाजा लगाया है और उनका मानना
है कि यह क्षेत्र समुद्री जलस्तर में अचानक हुई वृद्धि के कारण समुद्र में डूब गया
था। ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्र का जलस्तर बढ़ा और इस क्षेत्र में समुद्री जीवन
का जमाव हुआ। बाद में जब जलस्तर घटा, तो ये समुद्री जीव चट्टानों में दब गए और लाखों वर्षों में
जीवाश्म के रूप में बदल गए होगें, कुछ इसी तरह की घटनाओं और क्रियाकलापों ने इस
बेहतरीन संरचना को हमारे सामने लाकर रखा है ।
पार्क का महत्व
गोंडवाना मरीन फॉसिल पार्क केवल छत्तीसगढ़ या भारत के लिए ही नहीं,
बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक महत्वपूर्ण भूवैज्ञानिक स्थल है।
ऐसे ही जीवाश्म ब्राजील के पराना बेसिन, ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स,
अंटार्कटिका के अलेक्जेंडर आइलैंड और दक्षिण अफ्रीका के
कारू बेसिन में भी पाए गए हैं। यह पार्क गोंडवाना महाद्वीप के भूगर्भीय इतिहास को
समझने में अहम भूमिका निभाता है।
बदलते मौसम और मानवीय गतिविधियों के कारण इस जीवाश्म उद्यान को नुकसान पहुंचने
का खतरा है। इसे संरक्षित करने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने ठोस कदम उठाए हैं। अगस्त 2021 में बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज के
वैज्ञानिकों, छत्तीसगढ़
राज्य जैव विविधता बोर्ड और वन विभाग के अधिकारियों ने इस क्षेत्र का निरीक्षण
किया था। मार्च 2022 में छत्तीसगढ़ वन विभाग ने इसे राज्य का पहला मरीन फॉसिल
पार्क घोषित किया।
इस जीवाश्म पार्क के विकास के लिए गंभीर प्रयास कर रही है। इसके सौंदर्यीकरण
के लिए 41.99 लाख रुपये स्वीकृत किए गए है। पार्क के बुनियादी ढांचे को
बेहतर बनाने और इसे पर्यटन व अनुसंधान के लिए अधिक सुविधाजनक बनाने की योजनाएं
बनाई जा रही हैं। आप भी कभी इस क्षेत्र का पर्यटन का प्लान बनाएं तो इसजगह को जरुर
सैर करें ।
कैसे पहुंचें
नागपुर से जबलपुर (राष्ट्रीय राजमार्ग-7), कटनी, शहडोल, बुरहार, अनुपुर
और कोटमा (एस.एच.-14) से होकर सड़क द्वारा इस क्षेत्र में
पहुँचा जा सकता है। यह क्षेत्र हसदेव नदी के दाहिने किनारे पर, दक्षिण पूर्व रेलवे के अनुपुर - चिरमिरी शाखा के 937 और 938 मील-पत्थर के बीच रेलवे पुल के पास
स्थित है और यह अम्माखेरवा गाँव के निकट मानेंद्रगढ़ रेलवे स्टेशन से लगभग 2.5
किमी दक्षिण पूर्व में है।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से मनेंद्रगढ़
की दूरी लगभग 300 किमी की है रायपुर से ट्रेन एवं टैक्सी की सुविधा मिल सकती है ,
इसके लिए नजदीकी स्टेशन मनेंद्रगढ़ है , वैसे आप चिरमिरी से होकर भी यहां आ सकते
हैं ।
कब जाना चाहिए
बरसात के मौसम को छोड़कर वर्ष भर इस जीवाश्म पार्क का
दौरा किया जा सकता है, क्योंकि
बरसात के मौसम में यह जीवाश्ममय स्थल हसदेव नदी के पानी से भर जाता है।
साभार - छत्तीसगढ़ जनसंपर्क विभाग

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