प्राचीन शिव मंदिर देवबलोदा ( दुर्ग)
छत्तीसगढ़ में यूं तो
अनेक धार्मिक स्थल हैं मगर कुछ स्थान ऐसे हैं जो आज भी कम प्रचारित या अनजाने से
रह गए हैं , देव बलोदा का शिव मंदिर भी इन्ही में से एक है। दुर्ग जिला मुख्यालय
और राजधानी रायपुर से काफी नजदीक ( लगभग 22-25 किमी) होने के बावजूद इस मंदिर को
वह लोकप्रियता नहीं मिल पाई जिसकी यह हकदार है , पिछले दिनों जरुर इस मंदिर के सौंदर्यीकरण पर
कुछ काम हुआ है मगर इतिहास और पर्यटन दोनों की दृष्टि से यह लोगों को आकर्षित करने
एवं आस्था का केन्द्र हो सकता है ।
इस मंदिर का निर्माण
कलचुरी युग में हुआ है ( ऐसा वहां लिखे पत्थरों से पता चला) लगभग 12वीं-13वी
शताब्दी में नागर शैली में बना यह मंदिर भगवान शिव के वैभव एवं शानदार कारीगरी के
लिए दर्शनीय है । मंदिर में प्रवेश के लिए दो प्रवेश द्वार हैं , इनमें से एक
द्वार सीधे कुंड की ओर है। पत्थरों पर कलाकृतियां
जिस ढंग से उकेरी गई हैं वह देखते ही बनती हैं । इस मंदिर में भी गुंबद नहीं है
ऐसा लगता है मंदिर पूरी तरह से बन नहीं पाया है औऱ अधूरी स्थिति में ही मंदिर को
छोड़ दिया गया है । मान्यताएं कहती है कि यह मंदिर छमसी रात के दौरान बनाया गया है
। छत्तीसगढ़ में और भी कुछ मंदिर हैं जिनके बारे में ऐसी धारणा है कि एक बार ऐसा हुआ था जब छःमाह तक सूरज नहीं
निकला था । हालांकि खगोलशास्त्री ऐसी किसी घटना या प्रसंग का जिक्र इतिहास के किसी
काल में हुआ हो ऐसा नहीं मानते ।
मंदिर परिसर को सजाने
का पूरा प्रयास किया गया है । मंदिर परिसर में ही एक कुंड है इस कुंड में बड़ी
संख्या में कछुए घूमते नजर आते हैं , यूं तो इतिहास और आस्था के बीच कोई सीधा
रिश्ता नहीं होता और इतिहास बिना किसी साक्ष्य के मान्यताओं को स्थान नहीं देता
मगर ऐसा कहना है कि इस कुंड का पानी कभी सूखता नहीं है और इसका भीतर एक सुरंग की
भी बात की जाती है जो सीधे आरंग में जाकर जुड़ती है जो यहां से काफी दूर है ।
मुख्य मंदिर के गर्भ गृह में स्वयं शिवजी विराजते हैं .....
शिवलिंग के बारे में मान्यता है कि यह स्वयं गर्भ ने निकला हुई शिवलिंग है , गर्भगृह में शिवजी के दर्शन के लिए तीन चार
सीढ़ियां ( लगभग तीन फीट) नीचे उतर कर
जाना होता है । मंदिर को नवरंग मंडप नागर शैली में बनाया गया है कलचुरी काल में
निर्मित यह मंदिर लाल बलुआ पत्थरों से बनाया गया है । मंदिर के चारों ओर दीवारों
पर तथा प्रवेश द्वार पर तरह तरह की नक्काशी की गई है जिसमें देवी देवताओं के चित्र
के अलावा रामायण के प्रसंगों की बानगी भी देखने मिलती है । मंदिर के अंदर मुख्य
रुप से शिवलिंग की ख्याति तो है ही मगर उसके अलावा भगवान जगन्नाथ और माता पार्वती
की प्रतिमा भी है , प्रवेश द्वार में स्वयं श्री गणेश विराजमान है जबकि मंदिर के गर्भगृह
के सामने नंदी विराजते हैं ।
महाशिवरात्रि में यहां
एक मेला का आयोजन किया जाता है जिसमें दूर-दूर से लोग आते हैं , श्रावण मास में भी
सोमवार के दिन यहां शिवजी पर जल अभिषेक के लिए लोगों का तांता लगा रहता है । मंदिर
परिसर में ही अनेक ऐसी मूर्तियों को भी रखा गया है जो खंडित हो चुकी है और जिनका
संरक्षण किया जाना जरुरी है ।
कैसे पहुंचेः
देवबलोदा वैसे तो स्वयं ही एक रेल्वे स्टेशन है मगर वहां
गाडियां रुकती नहीं है इसलिए आप यदि आना चाहें तो नजदीकी रेल्वे स्टेशन के लिए आप
दुर्ग या रायपुर दोनों में से किसी एक का चयन कर सकते हैं जहां से इसकी दूरी 20-25
किमी होगी , दोनों ही जगहों से आपको टेक्सी की सुविधा मिल जाएगी, निकटतम हवाई
मार्ग की बात करें तो रायपुर स्थित स्वामी विवेकानंद अतंर्राष्ट्रीय विमान अडडा का
उपयोग कर यहां पहुंचा जा सकता है , यहां भी आपको टेक्सी की सुविधा मिल जाएगी ।
कब जाएः
अगर आप मंदिर परिसर को पूरी तरह से देखना और घूमना चाहते हैं तो पर्वों के अवसर परआने से बचें क्योंकि महाशिवरात्रि या सावन सोमवार के दिनों में यहां बहुत भीड़ रहती है, परंतु यदि आप श्रद्धालु हैं तो अवश्य आप न अवसरों पर आकर शिवलिंग में अभिषेक कर कर सकते हैं ।
अपनी प्रतिक्रिया जरुर लिखें







