आनंद की कहानी .... गीतों की जुबानी
आनंद एक ऐसी फिल्म है जिसकी चर्चा आज भी होती ही रहती है.... एक खूबसूरत और कुछ पद तक फिलोसफिकल फिल्म थी आनंद । इसके बनने और सफलता के अनेक किस्से हैं राजेश खन्ना को सुपर स्टारडम तो मिला था मगर कलाकार के रुप में आनंद ही उसे पहचान देती है ...... इस फिल्म के गीत सुपहिट रहे....... एक गीतकार थे योगेश ..... यूं तो इस फिल्म में गुलजार ने गाने लिखे थे मरग योगेश की किस्मत में कुछ और ही था ........एक प्यारी सी धुन थी 'ना जिया लागे ना' इस पर सलिल चौधरी चाहते थे सुंदर सा गीत लिखा जाए औऱ उन्होंनें न जाने क्या सोचकर यह काम योगेश और गुलजार दोनों को सौंप दिया...... सलिल चौधरी को गुलज़ार का लिखा ज्यादा पसंद आया और उन्होंने इसी को रखा , योगेश ने भी इस धुन मेहनत की थी गीत लिखने के लिए और लिखा भी इसलिए सिप्पी साहब को लगा कि किसी कलाकार को उसकी मेहनत का मेहनताना तो देना ही चाहिए इसलिए उन्होंने गीतकर योगेश को उसके पारिश्रामिक के रूप में 2500 रूपये का चेक दिया.....योगेश स्वाबी मानी थे ... बोले
-''जब मेरा गीत आपने लिया ही नहीं तो मैं इसके पैसे कैसे लूँ .''
सिप्पी साहब सबझ गए कि कलाकार को दुख हुआ है .... उनकी भावना को समझकर वे स्वयं भी दुःखी हुए, उन्होंने सलिल दा से एक और धुन बनाने का आग्कोरह किया जिस पर योगेश गीत लिख सके... योगेश के लगन और स्वाभिमान के कारण एक और धुन पर बात चली और बनी ...जिंदगी कैसी यो पहेली हाय......
सभी को गीत पसंद आया ....... काका यानी राजेश खन्ना को तो इतना पसंद आया कि वे कहने लगे इस गीत को तो मुझ पर ही फिल्माना चाहिए.... सारे इसबात से सहमत हो गए ..... अब .योगेश का जलवा चल चुका था....उनके इस गीत को सुनकर सलिल दा ने योगेश को एक और गीत लिखने के लिए, अपने एक बांग्ला गीत की धुन दी.
वह बांग्ला गीत था-''अमांए प्रश्नो करे नील ध्रुब तारा''. इसी गीत की धुन पर योगेश ने लिखी 'कहीं दूर जब दिन ढल जाए......
तो जनाब गाने बनते हैं .... बनाए नहीं जाते ..... कोई कवि या लेखक किसी रचना को यह सोचकर नहीं लिखता कि वह एक कालजयी रचना लिखने जा रहा है .... कई बार साधारण सी रचना भी लोकप्रिय हो जाती है और कई बार उत्तम कोटि का सृजन भी उपेक्षित हो जाता है
आपने पढ़ा प्रमोद को

