जबान संभाल के
मैंने कभी भी भाषा की वकालत संवाद के लिए पुल के रुप की है ...... कभी भी उसे दीवार के रुप मे उपयोग करने का विरोध ही किया है ........ मेरा मानना है कि जब किसी भी भाषा के माध्यम से आप अपनी बात कहने की कोशिश करते हैं और सामने वाला आपकी बात समझ जाए तो यही संवाद की सार्थकता है ......अनावश्यक रुप से भारी भरकम शब्दों का बोझ लादकर विद्वता सिद्ध करने में कोई बहादुरी नहीं ...... गांधीजी इसीलिए हिन्दुस्तानी जबान की वकालत करते थे जिसमें हिन्दी , फारसी, अंग्रेजी, उर्दू का मिश्रण बहुतायत में उपयोग होता है ......... खालिस के नाम पर कठिन भाषा संवाद को जटिल बनाती है..........मगर उसकी आड़ में चलता है बोलकर कुछ भी बोला जा रहा है ..... इस पर अंकुश लगाना जरुरी है .....
अक्सर आपने देखा होगा लोग लिखते हैं “मृतात्मा की शांति के लिए ....” जबकि सभी जानते हैं कि आत्मा अजर-अमर है .... जब वो अमर है तो फिर मृत कैसे हुई...... इतनी बात तो सुधारनी जरुरी है न ....... ऐश्वर्या राय से पहले यह नाम और शब्द मैंने कम ही सुना था ........ हिन्दी में शायद ऐश्वर्य ही सही शब्द है ..... उसमें आ की मात्रा लगाकर ऐश्वर्या बनाना शायद सही नहीं .......... किसी लड़के का नाम सूर्या, कृष्णा, शिवा, भीमा आदि सुनकर बहुत ही भद्दा लगता है; क्योंकि इनके पुंल्लिंग रूप क्रमशः सूर्य, कृष्ण, शिव, भीम आदि हैं।
सभी जानते हैं कि 'आ' प्रत्यय से स्त्रीलिंग रूप की
निर्मिति होती है, जैसे– छात्र से छात्रा, प्रिय से प्रिया, अग्रज से अग्रजा, अनुज से अनुजा आदि। 'सब चलता है' ने भाषा का कबाड़ा कर दिया है ..... हिन्दी को मातृभाषा कहने वाले इन तथ्यों पर गौर करें और हो सके तो अपने आसपास ऐसा कुछ घट
रहा हो तो उसे रोकने का प्रयास करें ...........मातृभाषा से कटना अपनी जड़ों से
कटना है; क्योंकि हिंदी हमारे हँसने, खेलने,
लड़ने-झगड़ने और सपने देखने की भाषा है.......... हम अपने मजाक भी
हिन्दी में ही करना पसंद करते हैं ....... सपने अंग्रेजी में नहीं आते .......... रोमन
में हिन्दी लिखने वाली पीढ़ी को समझाना
जरुरी है ......
आप पढ़ रहे थे प्रमोद को .......

