मर्द को भी दर्द होता है.......
80 के दशक में आई थी शायद यह फिल्म जिसका नाम था “मर्द” ...... शायद 1985 में.... मनमोहन देसाई के बनाई थी ...... दारा सिंह के डायलाग थे ..... बाद में यही डायलाग अमिताभ से भी बुलवा लिए ......
सारी दुनिया को पता चल गया कि मर्द को दर्द नहीं होता.....हालांकि यह प्रत्यक्ष रुप में हमारे समाज में वैसै भी व्याप्त और प्रचलित धारणा है ..... हमारे समाज में लड़कों या पुरुषों को रोना मना है ...... हम पुरुष चाह कर भी नहीं रो सकते ......
औरतें जिस तरह किसी भी अवसर पर अपना दुख हल्का करने के लिए रोकर अपनी भावाभिव्यक्ति कर सकती है ..... वैसा अधिकार समाज ने पुरुषों को नहीं दिया है ....... इस बात पर कुछ प्रचलित कथन आप अपने आसपासअक्सर सुनते होंगे..... “क्या लड़कियों की तरह रोते हो”.......... “जब देखों लड़कियों की तरह आंसू बहाते रहते हो” ...... मतलब रोने का कापीराइट समाज ने महिलाओं को दे रखा है........
समाज की यह धारणा और मान्यता बहुत गलत है ........ “मर्द को भी दर्द होता है साहब” ...... वो भी रोना चाहता है ...... उसे भी रोने के लिए कंधों की जरुरत महसूस होती है ...... मगर क्या करे ...... आप उसे रोने नहीं देते ...... आपको लगता है वो रो देगा तो उसका पुरुषत्व पर प्रश्न चिन्ह खड़े हो जाएगा ..... वैज्ञानिक रुप से भी इंसान को रोना उतना ही जरुरी है जितना हंसना ......
ऐसे मौकों पर जब दिल भर आए और आंसू निकलने को हो तो सभी को रो लेना चाहिए .....मन इससे हल्का हो जाता है और इसका प्रभाव शरीर के साथ-साथ स्वास्थ्य पर भी पड़ता है .......मर्दों की मजबूती का पैमाना उसके आंसुओं को मत बनाइए .......वो कितना मजबूत है या जीवन के परेशानियों से लड़ने में कितना सक्षम है इस बात को आप यह देखकर नहीं तय कर सकते कि वह परेशानियों या मुसीबतों में रोता है .......
रोना दरअसल एक शारीरिक क्रिया है जिसका संबंध हमारे मानसिक स्थिति से होता है और जो मन-मस्तिष्क में घटता है उसके परिणाम आंसुओं या मुस्कान दोनों रुप में प्रकट होता है .......... मैं तो कहता हूँ अगर कुछ बुरा लग रहा है या दिल दुख रहा है तो रो लीजिए .... जी भर कर रो लीजिए ..... उस समय यह मत सोचिए कि आप मर्द है ...... क्योंकि मर्द को भी दर्द होता है .........
आप पढ़ रहे थे प्रमोद को ....

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