भिंडी में जीवन दर्शन .....
कल श्रीमती जी को जमीन पर भिंडी लेकर उसे सहेजते, सुधारते और संवारते देखा....बीच में एक सहज प्रक्रिया को देखकर इस लेख को लिखने का मन हुआ..... बाजार में टमाटर के महंगे दामों ने थाली से चटनी गायब कर दिया है.... वहीं सब्जियों से भी टमाटर लापता हो गया है....ऐसे में भिंडी जिसे हम छत्तीसगढ़ में रमकेरिया या रमकेलिया भी कहते हैं का जलवा बरकरार है।
...... पसंद नापंसद अपनी जगह है .... मगर इस भिंडी ने जो दर्शन का ज्ञान करवाया वह आज तक ध्यान में नहीं आया था ..... भिंडी को सब्जी बनाने ....परोसने और खाने से पहले एक प्रक्रिया से गुजरना होता है...... हालांकि ऐसा सभी सब्जियों के साथ है मगर भिंडी ने इस बार आंखें खोल दी थी ....... श्रीमतीजी जब भिंडी को बाजार से खरीदती हैं तब मैने यह देखा है कि वो अक्सर उसके कोनों से उसे मोड़कर देखती है पता नहीं क्या चेक करती है ...... किसी वैज्ञानिक की भांति उसको देख-परख करके कभी खारिज करती है तों कभी टोकनी में डालकर उसे चयनित होने की खुशी प्रदान करती है ..... ये भिंडी के सब्जी बनने की प्रक्रिया में पहला चरण है ..... उसके बाद हरी हरी भिडी रसोई में पहुंचती है .... अब उसे सुधारने की क्रम से फिर शुरुआत होती है ......
लेख की शुरुआत इसी क्रम के अवलोकन से हुई थी ..... मैने देखा कि श्रीमतीजी हर भिंडी को सहेज कर देखती .... उपर नीचे फिर उसे काटती .....ऐसा करते करते अचानक उसे किसी एक भिंडी में छेद दिख गया .......शायद वह सब्जी में डालने लायक नहीं था ..... मगर नहीं ..... ऐसा नहीं .... श्रीमती जी ने एक पोस्टमार्टम किया और उसका वह हिस्सा जो उपयोगी नहीं था उसे पूरी तरह काटकर अलग कर दिया ..... बाकी हिस्सा उपयोगी था .... ठीक था..... उसे सब्जी में बाकी भिंडी के साथ शामिल कर दिया गया...... इसका मतलब साफ था उसने उसे उसकी उतनी खासियत के साथ स्वीकार कर लिया जितना उपयोगी था ...... हम ऐसा क्यों नहीं करते ...... लोगों को उनकी उतनी ही खासियत के साथ स्वीकार क्यो नहीं करते ..... जो पसंद नहीं होता उसे पूरी तरह क्यों खारिज कर देते हैं .... हम उसे भिंड़ी की तरह अपने काम के हिस्सों के साथ स्वीकार करना क्यों नहीं सीखते ........कोई भी चीज पूरी तरह बेकार नहीं होती ..... उसी तरह कोई भी व्यक्ति पूरी तरह खराब नहीं होता ..... हमें यह देखना होगा कि हम उसमें से कितना काम का मान सकते हैं .... उसे स्वीकार करिए .... खारिज नहीं
आप पढ़ रहे थे प्रमोद को ...



