पंचमढ़ी के पन्ने
अब यात्रा पिपरिया से पंचमढ़ी की थी ....... हांलांकि महीना मई का था धूप भी थी ..... मगर हवा में अच्छी-खासी ठंडक थी ..... लगभग 54 किलोमीटर की यात्रा रही होगी जो पिपरिया और पंचमढ़ी के बीच को जोड़ती है ..... रास्ता से बेहतर इसे घाटी कहना सही होगा .....घुमावदार , कभी खड़ी तो कभी सीधी मगर रोमांच पेदा करने वाली इस यात्र से बच्चों में अच्छा खासा आनंद दिखाई दे रहा था ..... पंचमढ़ी पहुंचते ही मन को सूकून मिला क्योंकि आखिर में हम अपने डेस्टिनेशन तक पहुंच गए थे ....... दोपहर था ..... धूप भी थी मगर हवा में ठंडक थी ....पंचमढ़ी का बस स्टेंड देखा ..... रायपुर में कालीबाड़ी या पचपेड़ी नाका जैसे किसी भी मिनी बस स्टैंड भी उसकी तुलना में दुगुनी भीड़-भड़क्का वाले होगें...... लोग अपने काम में लगे थे हां होटल के एजेंट यहां भी थे मगर उतने आक्रामक नहीं लगे जैसे आम तौर पर इन पर्यटक स्थलों में पाए जाते हैं ...... हर प्रकार के होटल थे ...... अपनी सुविधानुसार एक होटल का चयन किया और सामान को रखकर फ्रेश होकर बाहर निकल पड़े ......शांत पचमढ़ी में चारों ओर पेड़ पौधे और घाटियाँ अपने रोमांच पर थी....... खाने की व्यवस्था में भी कोई परेशानी नही हुई ...... सब कुछ आसानी से और सामान्य दरों पर उपलब्ध था ..... हां कुछ चीजें जरुर एसआरपी से ज्यादा कीमत पर मिल रही थी पर उसका कारण जानकर बात समझ में आ गई ...... दरअसल उंचाई में होने के कारण यहां सामान को लाना थोड़ा महंगा होता है इसलिए चीजें थोड़ी महंगी थी ........... लोग भले ही लगे थे ...... यहां पर घूमना जिप्सी में ही होता था ...... वेसै दूसरी गाड़ियां भी दिख रही थी मगर जिप्सी बहुतायात में थी ......... पचमढ़ी की बसावट बहुत छोटी है ...... 842 घरों की आबादी ( एक जिप्सी वाले से मिली जानकारी के आधार पर) वाली इस छोटी सी जगह पर पुलिस मुझे कहीं देखने नही मिली , सड़कों पर सिग्नल भी नहीं मिला .... ट्रेफिक का कोई लोचा नहीं ...... आप इधर उधर कहीं भी घूमिए .... घूम फिर कर बसं स्टैंड ही पहुंचेंगे ...... बाजार भी ज्यादा बड़ा नहीं है ...... चाट-गुपचुप के ठेले हैं .... मगर कुछ खास क्षेत्र मे ही ...... केन्ट एरिया होने के कारण कुछ नियम कायदे कठोर हैं ...... प्रदूषण कम है... मच्छर बिलकुल भी नहीं मिला ...... रात में एसी चलाने की जरुरत महसूस नहीं होती होगी .......... पंखे से ही काम चल जाता होगा ऐसा लगता है ........ सड़के थोड़ी संकरी थी ( मुख्य मार्ग को छोड़कर) ..... कुल मिलाकर एक आदर्श परिस्थितियां थी किसी भी पर्यटक के लिए .....
पूरा शहर पहाड पर बसा है जहां आप सहज ही चलते हुए प्रकृति का आनंद ले सकते हैं ....... यूं तो पचमढ़ी और उसके आसपास अनेक स्थान हैं जिनको यहां साइटसीन के नाम पर मार्केटिंग किया जाता है ...... लोगों से बात करने से पता चला कि आय के लिए यहां के लोगों का मुख्य साधन पर्यटन से होने वाली कमाई ही है...... खेतीबाड़ी यहां नहीं होती ..... घरों के सामने जिप्सी खड़ी रहना सामान्य बात है क्योंकि यही जिप्सी इनका पेट भरती है ....... आज खाना खाकर आराम करते हुए यह तय किया गया कि शाम को जटाशंकर के दर्शन किए जाएं ...... पचमढ़ी में अपनी यात्रा को आप दो भागों में बांटकर चले तो समझना और समझाना दोनों आसान हो जाता है ...... एक भाग में आप धार्मिक पर्यटन कर लें और दूसरी भाग में प्राकृतिक


