चना भाजी चन्न के .....
“आज
भाजी नई बनाए अस का रानी .....”
ये स्वर आज भी मेरे कान में गूंजती है .... जब
माँ थी तो रोज उनको अपनी थाली में एक भाजी देखने की आदत थी ..... मेरे खयाल से उस पीढ़ी
की बहुत से लोगों में ये आदत थी कि वो रोज किसी न किसी तरह की भाजी को सब्जी की
तरह से अपनी थाली में नियमित रुप से स्थान देते थे .... पालक-चौलाई-लालभाजी यह तो
नियमित रुप से बाजार में मिलती रहती है इसलिए इनका रोज ही रसोई में कब्जा रहना
सामान्य बात है ..... मगर छत्तीसगढ़ मे अनेक तरह की भाजी ने अपना अस्तित्व बनाया
है ..... आपमें से बहुतों ने मूली को सलाद के रुप मे खाया होगा .... बहुतों ने
इसकी सब्जी (खट्टा) का स्वाद भी चखा होगा ..... मगर हमारे यहाँ आप मूली की भाजी को
भी बड़े स्वादिष्ट ढंग से बनाया जाने की रेसीपी समझ सकते हैं ..... मेथीभाजी भी
कुछ हद तक सीजनल है मगर सबसे बड़ी सीजनल भाजी और मेरी नजर में भाजियों की महारानी
है ..... चना भाजी ...... चना भाजी चन्न के ... खाले बेटा मन के .... एक लंबी
प्रक्रिया के बाद दमदार स्वादिष्ट भाजी बनकर तैयार होती है ...... तिवरा भाजी और
चना भाजी लगभग समकालीन होते है ..... ठंड की शुरुआत और भाजी की आमद लगभग एक साथ
होती है........ मैंने माँ को देर रात तक भाजी को सुधारते देखा था..... जब वो इस
दुनिया में थी तब रात को टीवी देखते हुए इस काम को अपने दैनंदिनी मे शामिल रखती थी
ताकि किसी तरह की कमी न रह जाए और एक
अच्छी डिश तैयार हो सके....
चना भाजी चने
के हरे पत्तों से बनाया जाता है. चने के पौधे जब बड़े हो जाते हैं फूल आने से पहले, तब उन पौधों को ऊपर से थोड़ा थोड़ा तोड़ा जाता है और इन
तोड़े हुये हरे पत्तों से चने की भाजी बनाई जाती है,और पौधे
को को भी लाभ होता है, इस तरह तोड़ने से पौधा और घना हो जाता
है ज्यादा फलता है.
तिवरा
भाजी औऱ चना भाजी दोनों को छत्तीसगढ़िया किचन में आप सामान्य तौर पर बनते देखे
होंगे ..... खाया भी होगा .... भाजी के साथ कुछ इलेमेंट इसके अमलगम होते हैं
जिनमें बैंगन .... जिसे इल लेख मैं भांटा कहे तो बेहतर होगा .... क्योंकि भांटा
बिना भाजी की कल्पना नहीं होगी ..... बघार का भी बड़ा महत्वपूर्ण योगदान होता है
...... भाजियों में मुनगे की भी भाजी बन सकती
है ..... अमारी , चरौटा जैसी भाजियों ने तो आयुर्वेदिक अस्तित्व का भी
प्रतिपादन किया .... अगर मैं भाजियों के नाम लेना चाहूँ तो शायद लेख छोटा पड़ जाए
क्योंकि छत्तीसगढ़ के विभिन्न अंचलों में तरह-तरह के भाजी बनाए और खाए जाने की पंरपरा है ...... पहले एक दौर था जब
सब्जियाँ विशेष सीजन में ही मिलती थी ..... टमाटर तो पहले ठंड में ही मिलता था मगर
हाइब्रिड टामाटर ने इसे आठों काल बारहों महीना की सब्जी बना दी ..... मगर आप चना
भाजी और तिवरा भाजी को कभी भी साल भर की सब्जी के रुप में नही बना पाएंगे ...
क्योंकि इसकी उपलब्धता चना और तिवड़ा की बोआई पर निर्भर करेगी ...... समय ने बदला
है सब कुछ.......... नए नए डिश आ गए मगर
छ्तीसगढ़िया भाजी का कोई मुकाबला नहीं ..... जो स्वाद और जो देसीपन इसमें है वो
शायद कही और न मिले ..... तभी तो चना भाजी चन्न के ..... .. खाले बेटा मन के ....

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