75 का “मौसम”- 75 की “आँधी”
वो था साल 1975 जब गुलजार ने दो फिल्में बनाई .... एक थी “आँधी” और दूसरा “मौसम” ....सर्वकालीन फिल्मों में ये दोनों फिल्में शुमार हैं .......प्रेम का अपराधबोध यदि आपको समझना हो तो इन दोनों फिल्मों से बेहतर कोई और फिल्म नहीं हो सकती ...... एक फिल्म में नायिका अपने अपराधबोध से ग्रस्त है तो दूसरे में नायक ..... संयोग देखिए दोनों में जो उभयनिष्ठ है वो हैं संजीव कुमार ..... हिन्दी फिल्मों के इस बेहतरीन अभिनेता ने परिपक्व प्रेम की जो प्रस्तुति इन दोनों फिल्मों में दी है वह काबिल-ए-तारीफ है ..... अधेड़ संजीव कुमार और सुचित्रा सेन के हृदय में प्रेम की चिंगारी उस रात में भी बाकी है जब यह गीत बजता है .... रात को रोक लो ..... रात की बात है और जिंदगी बाकी तो नहीं .....उस संयोजन और गीत को गुलजार साहब ही क्रियेट कर सकते थे .....एक तथ्य जानते चलें कि ये दोनों फिल्में 1975 में रिलीज हुई औऱ दोनों में संजीव कुमार अधेड़ प्रेमी की बेहतरीन भूमिका में थे .... दोनों का निर्देशन गुलजार साब साथ-साथ कर रहे थे ..... लगभग एक ही तरह के गेट अप में संजीव कुमार के साथ काम करने की आसानी के कारण वे दोनों फिल्में साथ मे ही बनाते रहे.png)
......शायद “आँधी” पहले रिलीज हुई थी मगर तब कुछ राजनितिक कारणों से इसको बैन कर दिया गया इसके कुछ दृश्यों को फिर से शूट किया गया इन सबके चलते “मौसम” पहले कमाल कर गई ..... “आँधी” फिल्म में सुचित्रा सेन नायिका है ........ अपनी व्यकितगत महत्वाकांक्षा और परिवारके दबाव के चलते वे साथ नहीं रह पाते मगर बाद में जब वे मिलते हैं तो प्रेम फिर किसी निश्छल झरने सा बहने लगता है ....... दरअसल प्रेम को आप बाँध नहीं सकते ....उसे बहने देना चाहिए .... इस फिल्म में सुचित्रा सेन का अपराधबोध सहज ही देखा जा सकता है ...... तुम आ गए हो .... नूर आ गया है .... ये बताता है कि प्रेम में विचार धाराओं का टकराव दूरियां जरुर पैदा करता है मगर अनुकूल समय आने पर पुनः उभर जाता है। ये दोनों फिल्में आम प्रेम कहानियों की लीक से हटकर बनाई गई , मगर अपने आप में कमाल थी ..... जो अपराधबोध आँधी में सुचित्रा सेन को है वहीं “मौसम“में नायक संजीव कुमार को है ..... संजीव कुमार शर्मिला टैगोर के प्रति अपने प्रेम की अपराधबोध की भावना को उसकी बेटी को बेहतर जीवन देने के प्रयास में पूरा करते दिखाई देते है .... कहानी में वे शर्मिला से प्यार करते हैं मगर परिस्थितिजन्य कारणों से उसको अपना नहीं पाते ..... या यूँ कहें कि वापस नहीं आते ..... इधर उसकी (शर्मिला की )हो जाती है .... औऱ उसकी बेटी कोठे में पहुंच जाती ..... पूरी फिल्म में संजीव कुमार इसी जद्दोजहद में है कि उस अपराध को सुधार लिया जाए जो उसने अपने प्रेम में किया है ..... पश्चाताप ..... दुख औऱ भावनाओं का ज्वार पूरी फिल्म में खुमार पर है ....शानदार गीतों और गंभीर अभिनय की यह “आँधी” और ये “मौसम” याद रहेगा ....
प्रमोद
